भोपाल का इकबाल मैदान, जो कभी अपने विशाल प्रवेश द्वारों और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता था। आज सिमटकर केवल एक ही प्रवेश द्वार तक सीमित रह गया है। यह मैदान मशहूर शायर अल्लामा इकबाल की याद में समर्पित है, जिनकी शायरी ने करोड़ों दिलों को छुआ है। कभी इस मैदान की दीवारों पर उनकी रचनाएं अंकित थीं, जो इसे साहित्य प्रेमियों के लिए एक ऐतिहासिक स्थल बनाती थीं। मैदान के चारों ओर शौकत महल, सदर मंजिल, शीशमहल और रियाज मंजिल जैसी ऐतिहासिक इमारतें मौजूद हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं।
खिरनी वाले मैदान से इकबाल मैदान तक का सफर
इस मैदान को पहले खिरनी वाले मैदान के नाम से जाना जाता था, क्योंकि यहां खिरनी के पेड़ बहुतायत में थे। यही नाम इसके अस्तित्व की पहली पहचान बना। जब मशहूर शायर अल्लामा इकबाल यहां ठहरे तो उनकी याद में प्रशासन ने इसका नाम बदलकर इकबाल मैदान रख दिया। यह फैसला भोपाल की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
कभी थी भूमिगत लाइब्रेरी, जो अब इतिहास का हिस्सा बन गई
एक समय इस मैदान में एक भूमिगत लाइब्रेरी हुआ करती थी, जिसमें दुर्लभ पुस्तकों का संग्रह था। यह लाइब्रेरी साहित्य प्रेमियों के लिए ज्ञान का एक अनमोल खजाना थी। लेकिन लगभग चार साल पहले बारिश और जलभराव के कारण इसे दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया गया। इस लाइब्रेरी में रखी गईं पुस्तकें आज भी विभिन्न संग्रहालयों और पुस्तकालयों की शोभा बढ़ा रही हैं।
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रियासत का केंद्र रहा सदर मंजिल, जहां लगते थे ऐतिहासिक दरबार
इकबाल मैदान के पास स्थित सदर मंजिल कभी भोपाल रियासत की शक्ति का केंद्र था। यहां नवाबों के दरबार लगते थे और कई महत्वपूर्ण प्रशासनिक निर्णय लिए जाते थे। समय के साथ यह इमारत नगर निगम के मुख्यालय के रूप में भी उपयोग में लाई गई। हाल ही में इसका जीर्णोद्धार किया गया है, जिससे इसके ऐतिहासिक स्वरूप को संरक्षित रखने का प्रयास किया गया है।
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अल्लामा इकबाल और भोपाल का अटूट रिश्ता
अल्लामा इकबाल का भोपाल से गहरा नाता था। वे 1931 से 1936 के बीच चार बार यहां आए और लगभग छह महीने तक यहां ठहरे। इसी दौरान उन्होंने कई ऐतिहासिक नज़्में लिखीं, जो ‘ज़र्ब-ए-कलीम’ नामक किताब में संग्रहित हैं। यह उनकी लेखनी का वह दौर था, जिसने उन्हें साहित्य के शिखर तक पहुंचा दिया।
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समय के साथ धुंधली होती यादें
समय के साथ इकबाल मैदान की भव्यता थोड़ी फीकी पड़ गई है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व आज भी कायम है। कभी कई प्रवेश द्वारों वाला यह मैदान अब सिर्फ एक द्वार तक सीमित रह गया है, जैसे समय के साथ कई यादें धुंधली हो जाती हैं। लेकिन इकबाल की शायरी और उनकी स्मृतियां इसे जीवंत बनाए रखती हैं। यहां मौजूद शौकत महल, सदर मंजिल और अन्य इमारतें आज भी इतिहास की कहानियां कहती हैं, जो इस मैदान की विरासत को अमर बनाए रखती हैं।