आजकल निवेश की दुनिया में एसआईपी यानी सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान की काफी चर्चा है। लेकिन बाजार में लगातार होने वाले उतार-चढ़ाव के कारण यह हर निवेशक के लिए सही ऑप्शन नहीं हो सकता। वहीं इमर्जेंसी फंड के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी (FD) को ज्यादा सुरक्षित और भरोसेमंद माना जाता है। एफडी में निवेशक को निश्चित ब्याज दर के साथ गारंटीड रिटर्न मिलता है, जबकि एसआईपी में रिटर्न बाजार की स्थिति पर निर्भर करता है। अगर जरूरत के समय बाजार में गिरावट आ जाए तो एसआईपी में किया गया निवेश कम हो सकता है। इसीलिए कई निवेशक आज भी एफडी को प्राथमिकता देते हैं, खासकर जब इमर्जेंसी फंड की बात आती है।
एफडी में निवेश करने से पहले इन बातों का रखें ध्यान
ब्याज दरों की तुलना जरूर करें
एफडी करने से पहले विभिन्न बैंकों और वित्तीय संस्थानों की ब्याज दरों की तुलना करना आवश्यक है। सरकारी और निजी बैंकों की एफडी ब्याज दरों में अंतर हो सकता है। अगर बिना तुलना किए किसी बैंक में एफडी कर दी जाए तो संभव है कि आपको कम ब्याज दर मिले और कुल रिटर्न भी कम हो जाए।
लॉक-इन पीरियड का चुनाव समझदारी से करें
एफडी में एक निश्चित लॉक-इन पीरियड होता है। अगर इस अवधि के समाप्त होने से पहले निवेशक को पैसे की जरूरत पड़ती है और एफडी तोड़नी पड़ती है तो बैंक पेनल्टी काट सकता है। इसलिए निवेश करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि आपकी जरूरत के हिसाब से लॉक-इन पीरियड सही हो।
टैक्स का रखें ध्यान
एफडी से मिलने वाले ब्याज पर टैक्स भी लगता है। अगर आपकी एफडी से सालाना ब्याज 40,000 रुपये (निजी बैंकों में) और 50,000 रुपये (वरिष्ठ नागरिकों के लिए) से अधिक है तो बैंक 10% टीडीएस (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) काटेगा। अगर आपने बैंक को अपना पैन नंबर नहीं दिया है तो यह दर 20% तक हो सकती है। जिन निवेशकों की कुल सालाना आय टैक्सेबल नहीं है, वे फॉर्म 15G (गैर-वरिष्ठ नागरिक) या 15H (वरिष्ठ नागरिक) भरकर टीडीएस से बच सकते हैं।
एकमुश्त निवेश करने से बचें
अक्सर निवेशक अपनी पूरी पूंजी एक ही बैंक में एकमुश्त एफडी में डाल देते हैं। लेकिन जब पैसे की जरूरत पड़ती है, तो उन्हें पूरी एफडी तोड़नी पड़ती है, जिससे ब्याज का नुकसान होता है। इस स्थिति से बचने के लिए, निवेशक को अपनी राशि को छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित कर अलग-अलग एफडी में निवेश करना चाहिए। इससे जरूरत पड़ने पर केवल उतनी ही राशि की एफडी तोड़ी जा सकेगी, जितनी जरूरी हो।
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ऑटो-रिन्यूअल पर नजर रखें
अक्सर एफडी की अवधि समाप्त होने के बाद वह ऑटो-रिन्यू हो जाती है और पुराने ब्याज दर पर ही बनी रहती है, भले ही बाजार में ब्याज दर बढ़ चुकी हो। इसलिए जब एफडी मैच्योर हो तो इसे नए और अधिक ब्याज दर पर दोबारा निवेश करना बेहतर होता है।
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बैंक और वित्तीय संस्थान की विश्वसनीयता जांचें
कई वित्तीय संस्थान और निजी बैंक ज्यादा रिटर्न का लालच देकर निवेशकों को आकर्षित करते हैं, लेकिन यह हमेशा सुरक्षित नहीं होता। एफडी करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि बैंक या वित्तीय संस्था भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा अनुमोदित हो। DICGC (डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन) द्वारा कवर किए गए बैंक ही चुनें, क्योंकि यह 5 लाख रुपये तक की जमा राशि को बीमा सुरक्षा देता है।
नॉमिनी अवश्य जोड़ें
एफडी में नॉमिनी जोड़ना बहुत जरूरी है। यदि किसी कारणवश निवेशक का निधन हो जाता है और नॉमिनी नहीं जुड़ा है तो पैसा निकालने में कानूनी दिक्कतें आ सकती हैं।
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समय से पहले एफडी न तोड़ें
जरूरत पड़ने पर कई निवेशक जल्दबाजी में एफडी तोड़ देते हैं, जिससे उन्हें पेनल्टी भरनी पड़ती है और ब्याज का भी नुकसान होता है। इसे बचाने के लिए पहले से ही लिक्विड फंड या शॉर्ट टर्म एफडी का प्रबंध करना चाहिए।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए अतिरिक्त लाभ
60 वर्ष से अधिक उम्र के निवेशकों को एफडी पर 0.25% से 0.75% तक अधिक ब्याज दर मिलती है। इसलिए वरिष्ठ नागरिकों को अपने लिए अलग से एफडी कराने पर विचार करना चाहिए।