हाई कोर्ट ने एमपी सरकार पर ठोका 30 हजार का जुर्माना, भूमि अधिग्रहण का मामला, दिया 2 हफ्ते का अल्टीमेटम

mp high court fines government
mp high court fines government । Image Source: Google

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार पर 30,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा दायर जनहित याचिका पर समय पर जवाब न देने के कारण लगाया गया है। याचिका में मांग की गई थी कि ग्रामीण इलाकों में भूमि अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा दिया जाए। कोर्ट ने सरकार को दो हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का अल्टीमेटम दिया है और आदेश दिया है कि जुर्माने की राशि नर्मदा बचाओ आंदोलन और हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति में जमा की जाए। 17 फरवरी को इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख तय की गई है।

भूमि अधिग्रहण और मुआवजे से जुड़ा मामला

इस याचिका का संबंध भूमि अधिग्रहण मुआवजे में उचित गुणांक लागू करने से है। नर्मदा बचाओ आंदोलन का कहना है कि सरकार नए भू-अर्जन कानून, 2013 के प्रावधानों का सही ढंग से पालन नहीं कर रही है। इस कानून के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहित भूमि के मुआवजे की गणना एक से दो के बीच के गुणांक से की जानी चाहिए। यह गुणांक शहरी क्षेत्र से दूरी के आधार पर बढ़ता है, जिससे किसानों को उचित मुआवजा मिल सके। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने सभी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह गुणांक एक ही रखा है, जिससे किसानों और ग्रामीणों को उनकी जमीन की अपेक्षित कीमत नहीं मिल रही है।

इसे भी पढ़ें- बजट से पहले राहत, एलपीजी सिलेंडर हुआ सस्ता, जानें नई कीमतें

हाई कोर्ट का सख्त रुख

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति विवेक जैन की युगलपीठ ने सरकार के इस लापरवाह रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार को कई बार जवाब दाखिल करने का अवसर दिया गया, लेकिन इसके बावजूद कोई ठोस उत्तर नहीं दिया गया। इस निष्क्रियता को देखते हुए हाई कोर्ट ने 30,000 रुपये का जुर्माना लगाया, जिसमें से 15,000 रुपये नर्मदा बचाओ आंदोलन को और 15,000 रुपये हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति को देने का आदेश दिया गया है।

इसे भी पढ़ें- Budget 2025-26: नौकरीपेशा, किसान, महिलाएं और रेहड़ी-पटरी वाले, किसे क्या मिलेगा इस बजट में

कैसे होता है भूमि अधिग्रहण मुआवजे का निर्धारण

नर्मदा बचाओ आंदोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने बताया कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन कानून 2013 के तहत ग्रामीण इलाकों में मुआवजे की गणना एक विशेष गुणांक के आधार पर की जाती है। यह गुणांक शहरी क्षेत्र से दूरी के आधार पर एक से दो के बीच तय किया जाता है। इस प्रावधान का उद्देश्य ग्रामीण किसानों को उनकी जमीन के उचित मूल्य का मुआवजा दिलाना है। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने सभी ग्रामीण इलाकों के लिए गुणांक एक ही रखा है, जिससे किसानों को पर्याप्त मुआवजा नहीं मिल पा रहा है।

इसे भी पढ़ें- मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र से मांगे इतने करोड़, बजट से उम्मीदें बढ़ीं

सरकार के इस फैसले को तुंरत करें रद्द

नर्मदा बचाओ आंदोलन ने इस सरकारी फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर की है। आंदोलनकारियों का कहना है कि सरकार की इस नीति को तुरंत निरस्त किया जाना चाहिए और नए कानून के प्रावधानों के अनुसार उचित गुणांक लागू किया जाना चाहिए। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, बिहार और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने यह गुणांक दो तय किया है, जिससे वहां के किसानों को दोगुना मुआवजा मिल रहा है।

सरकार की चुप्पी पर गंभीर आरोप

नर्मदा बचाओ आंदोलन के वकील श्रेयस पंडित ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि सरकार जानबूझकर जवाब नहीं दे रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार किसानों को कम मुआवजा देना चाहती है, जिससे गरीब ग्रामीणों और आदिवासी समुदायों को भारी नुकसान हो रहा है। उन्होंने यह भी मांग की कि अगर सरकार ने जल्द जवाब नहीं दिया तो राज्य में सभी भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी जाए।

सरकार ने मांगा अंतिम अवसर

सरकार की ओर से कोर्ट में एक और अंतिम अवसर मांगा गया। इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि सरकार का जवाब तभी स्वीकार किया जाएगा, जब वे दो हफ्तों के भीतर नर्मदा बचाओ आंदोलन को 15,000 रुपये और हाई कोर्ट विधिक सेवा समिति को 15,000 रुपये जमा कर देंगे। अदालत ने स्पष्ट किया कि भुगतान की रसीद मिलने के बाद ही सरकार का जवाब मान्य होगा।